क्या है आचार संहिता कब लगती है आचार संहिता | आचार संहिता के 8 नियम जो जानने जरूरी हैं
क्या है आचार संहिता?
हेलो दोस्तों आज हम बात करेंगे आचार संहिता के बारे में जब भी किसी प्रदेश में कोई चुनाव का माहौल तैयार होता है या फिर किसी राज्य में चुनाव आने वाले होते हैं तो उसी समय वहां पर आचार संहिता का एक प्रश्न खड़ा हो जाता है बहुत से लोग इस बारे में जानकारी रखते हैं।
लेकिन बहुत से लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं होती जब भी किसी राज्य में चुनाव आने वाले होते हैं या फिर चुनाव आयोग के द्वारा चुनाव की तारीख तैयार कर दी जाती है तो उसी समय वहां पर आचार संहिता भी लग जाती है आचार संहिता कब लगेगी यह चुनाव आयोग डिसाइड करता है यह आखरी में रहता है ,यदि चुनाव राज्य में हो रहे हैं या विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं तो आचार संहिता पूरे राज्य में लगती है और यदि चुनाव लोकसभा के हो रहे हैं तो यही आचार संहिता पूरे देश में लगती है, कई बार यदि उप चुनाव हो रहे हो तो आचार संहिता केवल उस क्षेत्र में ही लगेगी जिस क्षेत्र में उप चुनाव हो रहे हो ।
कब लागू होती है आचार संहिता?
इस बात का प्रश्न हमेशा बना रहता था कि आखिर आचार संहिता कब लागू होती है बहुत से लोग सोचते हैं कि आचार संहिता चुनाव के कुछ समय बाद होती है कुछ लोग यह सोचते हैं कि आचार संहिता चुनाव आयोग लागू करता है इसका सही जवाब यह है कि आचार संहिता चुनाव की घोषणा होने पर ही लागू हो जाती है और इस बात की पुष्टि एक केस में भी की जा चुकी है,जो कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का है इसमें कि हरमन सिंह जलाल V/S यूनियन ऑफ इंडिया 1996 इस केस में कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग द्वारा आचार संहिता की तय की जाने वाली तिथि बिल्कुल सही है यानी कि आचार संहिता तभी लागू हो जानी चाहिए जब चुनाव की घोषणा हो जाती है,लेकिन समय-समय पर चुनाव आयोग और सरकार के बीच आपसी सहमति से चुनाव की तिथि और इसकी घोषणा आगे पीछे की जाती है इसके पीछे का कारण यही है कि चुनाव आयोग आचार संहिता की घोषणा बहुत पहले ना कर दें ।
जिससे सरकार के कार्यों और जनता के लिए की जाने वाली बहुत सी पॉलिसीज को नुकसान पहुंच सकता है इसीलिए सरकार और चुनाव आयोग आपसी सहमति से चुनाव की घोषणा और आचार संहिता को साथ में या आगे पीछे कर देते हैं लेकिन चुनाव की नोटिफिकेशन यानी ऑफिशियल घोषणा से 3 हफ्ते तक आचार संहिता लागू किया जा सकता है इससे ज्यादा कम समय नहीं दिया जा सकता और यही चुनाव आयोग का नियम चुनाव के लिए रहता है ।
चुनाव आयोग जब भी किसी राज्य में चुनाव की तारीख तय करता है तो आचार संहिता सताती है आचार संहिता का मतलब है कि आप इस राज्य में सरकार द्वारा कोई भी कार्य नहीं किए जाएंगे जैसे कि रोड कंस्ट्रक्शन या समाज के लिए कोई पॉलिसी तैयार करना अधिकारियों के लिए किसी भी नेता की घोषणा करना, जनता के लिए कोई भी घोषणा करना यह सब कुछ वहीं रुक जाता है सरकार की बहुत सी शक्तियां छीन ली जाती है।
क्या पाबन्दी लगती है चुनाव आयोग द्वारा?
सरकार आचार संहिता लगने के बाद किसी भी तरह की पॉलिसी को नहीं ला सकती और ना ही कोई घोषणा कर सकती है आचार संहिता के समय ऐसा आप सभी ने महसूस किया होगा कि प्रशासन द्वारा आसपास के इलाकों में यह घोषणा करवा दी जाती है कि आप सभी अपने-अपने हर तरह के हथियार प्रशासन के पास सरेंडर कर दें यह भी आचार संहिता का ही एक हिस्सा होता है आचार संहिता में किसी भी अधिकारी को किसी भी तरह की सरकारी योजना का घोषणा करना या उसके बारे में जनता को बताना अपराध माना जाता है।
आचार संहिता को प्रयोजन से लाया गया है कि चुनाव के वक्त जनता अपने विवेक और भूतकाल में किए गए सरकार के कार्यों से निर्णय ले ना कि चुनाव के समय की गई खोखली घोषणाओं से, आचार संहिता के समय बहुत से अधिकारियों की शक्तियां छीन लेती है और चुनाव आयोग के हाथ में बहुत शक्ति आ जाती है जैसे कि आप जानते हैं कि चुनाव आयोग चुनाव के समय उपा आचार संहिता लागू करने के समय सभी आधिकारिक और प्रशासनिक शक्तियां अपने हाथ में ले लेता है चुनाव के समय सभी अधिकारी चुनाव आयोग के अधिकारी बन जाते हैं और चुनाव खत्म होने तक यह सभी अधिकारी जो कि चुनाव आयोग द्वारा किसी कार्य के लिए निश्चित किए जाते हैं तब तक कार्य करते रहते हैं और चुनाव आयोग के लिए कार्यरत रहते हैं।
आचार संहिता लागू होने पर चुनाव आयोग द्वारा कुछ पाबंदियां लगाई जाती है जैसे कि आचार संहिता लागू होती दीवारों पर लिखे गए सभी तरह के पार्टी से संबंधित नारे हटा दी जाते हैं अपराध माना जाता है किसी भी तरह के धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल चुनाव में नहीं जाता और ना ही किसी पार्टी द्वारा किसी धार्मिक स्थल का चुनाव करना सही है चुनाव के समय किसी भी राजनीतिक पार्टी को किसी धार्मिक स्थल का इस्तेमाल करना सही नहीं माना जाएगा ।मतदाताओं को किसी भी तरह की रिश्वत नहीं दी जा सकती है वैसे तो रिश्वत देना एक कानूनी जुर्म है।
लेकिन चुनाव के समय किसी भी तरह का पैसों का लेनदेन करना और वह भी आम जनता से किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा पैसों का लेना देना एक रिश्वत ही माना जाएगा और यह कानूनी अपराध की श्रेणी में आएगा रिश्वत के बल पर वोट हासिल करना तो नीतिगत भी सही नहीं है किसी भी पार्टी द्वारा किसी दूसरी पार्टी पर निजी हमले करना सही नहीं होगा, मतदान केंद्रों पर वोटरों को लाने के लिए कोई भी पार्टी अपनी तरफ से किसी भी तरह का गाड़ी वाटर वाहन आदि इस्तेमाल नहीं करेंगे और ना ही कर सकते हैं मतदान के दिन और पहले किसी को शराब देना या शराब का वितरण करना चाहे वह किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है एक अपराध की श्रेणी में माना जाएगा ।
चुनाव आयोग के क्या नियम है आचार संहिता लागू होने पर?
यदि आप चुनाव आयोग के कोड ऑफ कंडक्ट रूल्स रेगुलेशन को देखें और इसके प्रत्येक खंड या पार्ट को पड़े तो इसके पार्ट एक में यह बताया गया है कि चुनाव के समय पॉलीटिकल पार्टीज और तमाम अधिकारी का बिहेवियर कैसा रहना चाहिए और इसका जो खंड 2 है वह पॉलिटिकल पार्टी द्वारा की जाने वाली तमाम मीटिंग या एक तरह से रेल लाइन पर अपनी पकड़ सकता है और इनको एक सीमा में प्रति पत्र करता है।
यदि इसके खंड 4 और 5 की बात की जाए तो वह पोलिंग डे वाले दिन पुलिस स्टेशन और पॉलीटिकल पार्टी द्वारा वाले पोलिंग एजेंट द्वारा किए जाने वाले को भी अपने रखता है और उन तमाम पॉलीटिकल पार्टीज इसे लागू करता है यदि बात की जाए खंड 7 तो वह चुनाव आयोग में की जाने वाली पॉलिटिकल पार्टी के खिलाफ शिकायत के प्रोसेस कार्यवाही को बताता है और यदि हम इसके खंड 8 की बात करें तो यह इलेक्शन पार्टी या राजनीतिक पार्टी द्वारा की जाने वाली घोषणा और उनके द्वारा दिखाए जाने वाले इलेक्शन मेनिफेस्टो या घोषणापत्र को एक तरह का दिशा निर्देश जारी करता है कि वह किस प्रारूप में होनी चाहिए।
चुनाव आयोग के नियमों का क्या है सविंधानिक आधार?
बात करते हैं इसके कंडक्ट रूल्स के कड़ाई से पालना की तो कुछ लोगों का मानना है कि यह एक कानून की तरह काम नहीं कर सकता और ना ही आप इस कंडक्ट के आधार पर किसी को अदालत के समक्ष चुनौती दे सकते हैं, लेकिन ऐसा सोचना बहुत जल्दबाजी होगी क्योंकि यदि चुनाव आयोग के कोड ऑफ कंडक्ट को ध्यान से READ करें तो इसके बहुत से जुर्म इंडियन पेनल कोड और इंडियन रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट मैं भी दिखाए गए हैं,जैसे कि इसमें बात की गई है कि किसी को रिश्वत देना अपराध है यह आपको इंडियन पैनल कोड मैं मिल जाएगा इसका मतलब यह है कि आप यह नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग द्वारा दिखाए गए सभी कानून मजबूत नहीं है ,बल्कि इसके बहुत से नियम इंडियन पेनल कोड के साथ साथ इंडियन रिप्रेजेंटेटिव मिलते हैं इसके कारण अपराधी को बहुत ही सख्त सजा और जुर्माना भी हो सकता है।
चुनाव आयोग द्वारा घोषित यह नियम केवल पैनल में ही नहीं दिया है बल्कि उसे भारतीय संविधान के आर्टिकल 324 द्वारा भी मान्यता प्राप्त है और यह कहता है कि चुनाव आयोग भारत में चुनाव के सही इंतजाम 8 के लिए समय-समय पर कुछ नियम बना सकता है इसी का एक उदाहरण एक केस में भी मिलता है जो की सुब्रमण्यम बालाजी v/s तमिलनाडु 2013 मैं माननीय न्यायालय ने कहा की भारत का चुनाव आयोग चुनाव के दौरान नियम बनाने के लिए भारतीय संविधान के आर्टिकल 324 द्वारा आजाद है और वह खुद ही अपने सुपरविजन में कभी भी चुनाव के लिए तैयार कर सकता है इससे यह साबित होता है कि भारत का संविधान चुनाव आयोग को चुनाव के समय नियमों को बनाने या उनको जमीन पर उतारने के लिए पूरी शक्ति प्रदान करता है इसीलिए चुनाव आयोग द्वारा तय किए गए सभी नियम कमजोर हैं या इन्हें चेंज किया जा सकता है यह कहना गलत है।
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